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राह का पत्थर- दोस्त मेरा

जब थे, तब थे 

दोस्त हम....
अब हो गई है बात
आई-गई सी
तुम्हें पास रखना न आया___दोस्ती का
मुझसे हो न सकीं
दरगुज़र____ग़लतियाँ तुम्हारी|

तुम दोस्त नहीं हो मेरे लिये अब
वो पत्थर हो, 
राह में पड़ा हुआ सा कोई,
जिसको मैं हटा देती हूँ....

इस ग़रज़ से,
कि सिर्फ़ मैं ही न गिर जाऊं कहीं
इसमें टकराकर
लेकिन इसलिये भी कि
चोट न पहुँचा दे____ये दूसरे लोगों को...|

✍अलमास💎

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